2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस के आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने मंगलवार को अपनी सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा सहित कई कारणों के आधार पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) की ‘इन-कैमरा ट्रायल’ की मांग का समर्थन किया. पुरोहित ने अपने वकील श्रीकांत शिवाडे के माध्यम से मंगलवार को विशेष एनआईए अदालत के समक्ष कहा कि एक खुले ट्रायल से ‘गैंगस्टर्स और आतंकवादियों’ सहित सभी तक मामले के ट्रायल की पहुंच आसान हो जाएगी. एनआईए ने पिछले महीने मामले की ‘संवेदनशील प्रकृति’ का हवाला देते हुए इन-कैमरा परीक्षण की मांग की थी. 29 सितंबर, 2008 को महाराष्ट्र के नासिक के मालेगांव में विस्फोट किया गया था, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हो गए थे. अब तक लगाया गया.
इससे पहले एनआईए ने इस केस की कार्यवाही को प्रकाशित करने और मुकदमे को कैमरे में कैद करने से मीडिया को प्रतिबंधित करने की मांग की थी. द इंडियन एक्सप्रेस सहित 11 मीडिया संगठनों के एक समूह ने एनआईए की याचिका का विरोध करते हुए कहा है कि अभियोजन पक्ष ने किसी भी गवाह द्वारा आशंका का आरोप लगाते हुए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया है और मुकदमे की रिपोर्टिंग की वजह से किसी तरह का मतभेद नहीं है. आरोपी कर्नल प्रसाद पुरोहित के वकील श्रीकांत शिवाडे ने मंगलवार को कहा कि चूंकि उन्होंने सैन्य खुफिया अधिकारी के रूप में काम किया था, इसलिए वह राष्ट्र-विरोधियों के टारगेट लिस्ट में थे और उनकी जिंदगी को राष्ट्र विरोधियों से खतरों का सामना करना पड़ा. उन्होंने दलील दी कि अगर किसी की पहुंच के बिना इस मामले का ट्रायल किया जाता है तो कोई पक्षपात नहीं किया जाएगा. इस मामले में अभियोजन और अभियुक्त, जिसमें कर्नल पुरोहित, भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत पांच अन्य शामिल हैं. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, अधिवक्ता शिवदे ने यह भी कहा कि रक्षा मंत्रालय से वर्गीकृत दस्तावेज परीक्षण का हिस्सा होंगे, जिन्हें किसी भी बाहरी व्यक्ति के लिए सुलभ नहीं बनाया जा सकता है.
महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर, 2008 को बम धमाका हुआ था. ब्लास्ट के लिए मोटर साइकिल में बम लगाया गया था. इस आतंकी हमले में 7 लोग मारे गए थे और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे. शुरुआत में इस घटना की जांच महाराष्ट्र पुलिस की एटीएस ने की थी. बाद में यह मामला जांच के लिए एनआईए को सौंप दिया गया था. एनआईए ने अपनी जांच में पाया है कि घटना की साजिश अप्रैल 2008 में मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रची गई थी, 24 अक्टूबर, 2008 को इस मामले में स्वामी असीमानंद, कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा ठाकुर को गिरफ्तार किया गया था जबकि 3 आरोपी फरार दिखाए गए थे. प्रज्ञा ठाकुर की गिरफ्तारी का आधार ब्लास्ट में उपयोग की गई मोटरसाइकिल थी. यह मोटरसाइकिल उनके (प्रज्ञा सिंह ठाकुर) नाम रजिस्टर्ड थी. प्रज्ञा ठाकुर लगभग 9 साल तक जेल में रहीं. अप्रैल 2017 में प्रज्ञा ठाकुर को कोर्ट से सशर्त जमानत मिल गई थी.