पुरस्कार और दंड देने की प्रक्रिया नौकरशाही के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी जीवन के दूसरे पक्षों में। हाल में कर्मठ, ईमानदार और नवोन्मेषी 16 जिला अधिकारियों को उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए पुरस्कृत किया गया। इसके बाद यह खबर आई कि कई टैक्स अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया, क्योंकि वे कारोबारियों को अनावश्यक रूप से तंग कर रहे थे। यह सिलसिला कायम रहना चाहिए।
बीते दिनों जिन अधिकारियों को पुरस्कृत किया गया वे देश के अलग-अलग हिस्सों में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। डॉक्टर अयाज फकीर भाई ने छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में स्वास्थ्य सुविधाओं को जन-जन को सुलभ बना दिया तो संदीप नंदूरी ने पानी की कमी से जूझते तमिलनाडु के कई गांवों में बर्बाद पानी को इकट्ठा कर फिर उपयोग में लाने की विधि ईजाद कर दी।
प्रतिभा और मेहनत का फल
वहीं राकेश कंवर ने हिमाचल प्रदेश में कूड़े के ढेर को एक खूबसूरत पार्क में बदल दिया। इसी तरह राजकुमार यादव, माधवी खोडे, कार्तिकेय मिश्रा आदि को जब शिक्षा, कौशल विकास जैसे क्षेत्रों में उनकी प्रतिभा और मेहनत का फल मिला। जब ऐसा होता है तो पूरी नौकरशाही में नई जान पड़ जाती है और अन्य अधिकारी भी कुछ बेहतर करने को प्रेरित होते हैं।
सिविल सेवा अवार्ड ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
पिछले कुछ दिनों में सरकार की कोशिश बेहतर काम करने वाले अधिकारियों को पुरस्कृत करने की रही है। 2006 में शुरू किए गए सिविल सेवा अवार्ड ने भी इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सिविल सेवा अवॉर्ड हर वर्ष सिविल सेवा दिवस यानी 21 अप्रैल को देश के अलग-अलग क्षेत्रों में शासन-प्रशासन से जुड़े हर स्तर के अधिकारियों द्वारा किए गए उत्कृष्ट कामों के लिए दिए जाते हैं।
राजस्थान के जिलाधिकारी द्वारा जेनरिक दवाओं की शुरुआत हो या फिर बदायूं के जिलाधिकारी द्वारा मल मुक्ति अभियान, कर्नाटक में भूमि रिकॉर्ड का कंप्यूटरीकरण करना हो अथवा रेलवे में ई टिकटिंग की व्यवस्था, इसी के चंद उदाहरण हैं।
बदल सकता है नौकरशाही का चेहरा
नि:संदेह संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित एक कड़ी चयन प्रक्रिया से गुजर कर देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं प्रशासनिक सेवाओं में आती हैं। यदि उन्हें लगातार इसी तरह प्रोत्साहन मिलता रहे तो नौकरशाही का चेहरा बदल सकता है। अभी तक के ज्यादातर अनुभव यही बताते हैं कि आजादी के बाद नौकरशाही की कार्यक्षमता में लगातार गिरावट आती गई है और भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, फिजूलखर्ची में बढ़ावा देखने को मिला है।
हम सब के निजी अनुभव भी यही बताते हैं और एनएन वोहरा से लेकर प्रशासनिक सुधार आयोग की तमाम रपटें और दूसरे तमाम सर्वे भी इसी ओर इंगित करते हैं, लेकिन कर्मठ अफसरों को प्रोत्साहन के प्रचार-प्रसार से हालात बदले जा सकते हैं।
पुरस्कारों की भूमिका महत्वपूर्ण
भारतीय नौकरशाही की बहुत बड़ी कमी यह महसूस की जाती रही है कि आप एक बार उसके हिस्से हो जाएं तो आप कुछ करें या न करें या कितना भी अच्छा करें आपको कोई फल नहीं मिलने वाला और न करने पर भी आपके करियर पर कोई असर नहीं होने वाला। इस धारणा को मूल रूप से समाप्त किए जाने की जरूरत है। इन पुरस्कारों की यही भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल पुरस्कार ही नहीं, सरकार को निकम्मे लोगों से मुक्ति भी पानी होगी।
हाल में जिन अधिकारियों की उम्र 55 वर्ष हो चुकी है या जो 25 वर्ष की सेवा कर चुके हैं उनके कार्य निष्पादन का आकलन किया जा रहा है। सरकार के ऐसे कदमों और खासकर नाकारा या भ्रष्ट अधिकारियों की छुट्टी करने पर किसी को हाय तौबा मचाने की जरूरत नहीं है।
निकम्मे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाना जरूरी
विशेषकर तब जब एक तरफ तो आप सरकार की, उसकी नौकरशाही की आलोचना करते हैं और उसकी कार्यक्षमता में गिरावट का रोना रोते हैं। इसके अलावा कानून व्यवस्था, रेल, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधा के अभाव की बात करते हैं और फिर जैसे ही सरकारी दफ्तरों में बैठे निकम्मे लोगों को बाहर का रास्ता दिखाने की जरूरत होती है तो कुछ लोग उनके बचाव में लग जाते हैं। इस क्रम में लोग कई बार सरकार पर निजीकरण करने का आरोप भी लगाते हैं।
शासन या सत्ता समाज के कल्याण के लिए होती है। उसे नौकरशाही करे या निजी क्षेत्र करे, अंतिम आदमी को नागरिक हक, न्याय और सुविधाएं चाहिए, ईमानदारी चाहिए, भ्रष्टाचार से मुक्ति चाहिए। जो भी सरकार इसे निष्पक्षता से करे उसका साथ देने की जरूरत है। यह उल्लेखनीय है कि 16 आइएस अफसरों को पुरस्कृत करने की चयन प्रक्रिया में देश के नामी-गिरामी लोग जुड़े हुए थे।
नौकरशाही में बदलाव के संकेत
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आरएम लोढ़ा उस चयन समिति के अध्यक्ष थे और पूर्व नौकरशाह हबीबुल्ला, पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव, पूर्व कैबिनेट सचिव चंद्रशेखर सदस्य थे। उन्होंने पांच मानदंडों पर देशभर से आई संस्तुतियों पर विचार किया और फिर एक्सीलेंस इन गवर्नेंस अवार्ड के लिए उन्हें चुना है। हाल में उठाए गए कई कदम नौकरशाही में बदलाव के संकेत दे रहे हैं।
जैसे इन्हें पुरस्कृत किया गया है वैसे ही कुछ दिनों पहले कस्टम, इनकम टैक्स, पुलिस आदि विभाग के दर्जनों अधिकारियों को सेवा से बर्खास्त भी किया गया है। काफी अरसे के बाद उन अधिकारियों को भी नौकरी से निकाल दिया गया है जिन्हें सरकार ने विदेश भेजा तो था प्रशिक्षण के लिए, लेकिन वे वर्षों से बिना बताए गायब थे। ऐसे अधिकारियों को राष्ट्रीय हित में बिना किसी रियायत के तुरंत सबक सिखाने और दूसरों को भी संदेश देने की जरूरत है।
नौकरशाही को बनाया जाए जनमुखी
ठीक जिस वक्त कुछ कर्मठ अफसरों को पुरस्कृत किया जा रहा था उसी समय नौकरियों में भर्ती प्रक्रिया में क्या-क्या सुधार अपेक्षित हैं, उस पर दिल्ली में विचार मंथन चल रहा था। मेरा मानना है कि न केवल भर्ती प्रक्रिया, बल्कि सेवाकालीन प्रशिक्षण आदि को भी फिर से परिभाषित करने की जरूरत है जिससे नौकरशाह, मालिक के बजाय जनता के सेवक के रूप में प्रतिष्ठित हो सकें। कस्तूरीरंगन रिपोर्ट ने भी इसी तरफ इशारा करते हुए कहा है कि हमारे नौकरशाह अंग्रेजी के दंभ में भारतीय जनता से लगातार दूर रहने की कोशिश करते हैं और गुमान रखते हैं। अब समय आ गया है कि नौकरशाही को जनमुखी बनाया जाए।
Hind Briagde
Editor- Majid Siddique