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अरुण जेटली का असमय निधन भाजपा के साथ-साथ देश की राजनीति के लिए भी बड़ी क्षति

पूर्व वित्त एवं रक्षा मंत्री अरुण जेटली का असमय निधन भाजपा के साथ-साथ देश की राजनीति के लिए भी एक बड़ी क्षति है। भाजपा को इस क्षति का आभास इसलिए और अधिक होगा, क्योंकि अभी चंद दिन पहले ही पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन हुआ है।

हालांकि न तो सुषमा स्वराज केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा थीं और न ही अरुण जेटली, लेकिन सार्वजनिक जीवन में उनकी सक्रियता भाजपा के साथ ही भारतीय राजनीति को भी संबल प्रदान करती थी। भाजपा के उत्थान में दोनों का ही बराबर का योगदान रहा।

 

एक समय था जब ये दोनों एक साथ सक्रिय और उपस्थित दिखते थे। यह एक विडंबना ही है कि समय के थोड़े से अंतराल में दोनों बारी-बारी से चल बसे। भाजपा के साथ भारतीय राजनीति को अरुण जेटली की कमी इसलिए महसूस होगी, क्योंकि वह अक्सर ही संकट मोचक की भूमिका में दिखते थे।

वह नेता से अधिक राजनेता थे। वह जटिल से जटिल विषयों के जानकार ही नहीं थे, बल्कि उन्हें सरल तरह से व्यक्त करने में भी महारत रखते थे। इससे भी बड़ी बात यह थी कि वह आम सहमति कायम करने में अग्रणी भूमिका निभाते थे।

यदि जीएसटी जैसी जटिल व्यवस्था अमल में आ सकी तो इसका सबसे अधिक श्रेय अरुण जेटली को ही जाता है। अलग-अलग मत वाले विभिन्न दलों के नेताओं के बीच आम सहमति बनाना शायद उनके ही वश की बात थी। संसद के भीतर और बाहर अपने इसी राजनीतिक कौशल के कारण वह विपक्षी दलों के बीच भी आदर और सम्मान पाते थे।

राज्यसभा को एक ऐसे सदन के तौर पर जाना जाता है जो विभिन्न विषयों पर कहीं अधिक धीर-गंभीर होकर चिंतन-मनन करता है। लंबे समय तक राज्यसभा के सदस्य रहे अरुण जेटली की ख्याति एक धीर- गंभीर स्वभाव वाले राजनेता की ही थी, लेकिन वह अपनी विनोदप्रियता के लिए भी जाने जाते थे।

वास्तव में इसीलिए उन्हें सुनना रुचिकर भी होता था और ज्ञानवद्र्धक भी। छात्र राजनीति से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले अरुण जेटली राजनीति के साथ ही विधि क्षेत्र की भी एक बड़ी हस्ती थे। वह जितने काबिल राजनेता थे उतने ही दक्ष वकील। इसके अलावा वह क्रिकेट प्रशासक के तौर पर भी जाने जाते थे और एक प्रखर बुद्धिजीवी के रूप में भी अपनी पहचान रखते थे। 

इसी कारण उनके प्रशंसक राजनीति से इतर क्षेत्र में भी हैं। यह सहज स्वाभाविक है कि 66 साल के अरुण जेटली के निधन को एक बड़ी क्षति के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि देश के राजनीतिक जीवन में उन मूल्यों को महत्व मिले जिनके लिए वह जाने जाते थे।

Hind Brigade

Editor- Majid Siddique


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