नई दिल्ली। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के गठन के ऐलान को सैन्य आधुनिकीकरण को बड़ी छलांग देने की मंशा के साथ ही सामरिक रणनीति में भी गुणात्मक बदलाव का संकेत माना जा रहा है। सीडीएस की नई व्यवस्था में तीनों सेनाओं के एकीकृत संयुक्त थियेटर कमांड दुश्मनों के लिए चिंता का सबब बनेंगी।
युद्ध क्षमता में इजाफा
सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि तकनीकी आधारित हाइटेक हथियारों के दौर में थियेटर कमांड और प्रस्तावित 'स्पेस कमांड' सीडीएस की नई व्यवस्था में तीनों सेनाओं की एकीकृत युद्ध क्षमता में इजाफा करेगी। हालांकि सीडीएस को सिविल नौकरशाही ही नहीं तीनों सेनाओं के आपसी प्रशासनिक वर्चस्व की शुरूआती खींचतान की चुनौतियों से रूबरू होने की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा रहा है।
तीनों सेनाओं की संयुक्त युद्ध क्षमता बढ़ेगी
सीडीएस पर सैन्य विशेषज्ञों की लगभग एकमत राय है कि इसकी वजह से मौजूदा संसाधनों में ही तीनों सेनाओं की संयुक्त युद्ध क्षमता बढ़ेगी। सैन्य आधुनिकीकरण और नये अस्त्र-शस्त्र हासिल करने की भविष्य की रूपरेखा तीनों सेनाओं की संयुक्त सामरिक ताकत में और भी गुणात्मक बेहतरी लाएगी। एकीकृत थियेटर कमांड में आने से तीनों सेनाओं के बीच आपरेशन के दौरान रणनीतिक और सामरिक समन्वय ज्यादा प्रभावी होगा।
तीनों सेनाएं एक चीफ और एक कमांड के अंदर
सैन्य विशेषज्ञ 16वीं क्राप्स के रिटायर्ड कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल रामेश्वर राय के मुताबिक सीडीएस के गठन का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि तीनों सेनाएं एक चीफ और एक कमांड के अंदर होंगी। इससे तीनों सेनाओं की संयुक्त रणनीतिक दृष्टि और क्षमता दोनों बढ़ेगी। सैन्य बलों में नेतृत्व की दुविधा नहीं रहेगी क्योंकि वे एक चीफ और एक कमान के अधीन होंगे।
लेफ्टिनेंट जनरल राय के मुताबिक जब तीनों सेनाओं की संयुक्त ताकत एक कमान के अंदर होगी तो इसकी सामरिक क्षमता विरोधी को परेशान करेगा। रणनीतिक विशेषज्ञ मेजर जनरल रिटायर्ड जेकेएस परिहार कहते हैं कि तीनों सेनाओं का संयुक्त कमान होने से हमारी न्यूक्लियर कमान और स्ट्रैटजिक कमान को दीर्घकालिक सामरिक रणनीति के हिसाब से फायदा होगा।
सीडीएस की नई व्यवस्था
सैन्य विशेषज्ञ रिटायर्ड कर्नल दानवीर सिंह का साफ कहना है कि सीडीएस का फैसला दुश्मनों को हमारी संयुक्त सामरिक ताकत का संदेश देने में बेहद कारगर रहेगा। सीडीएस की नई व्यवस्था दुश्मनों के लिए चिंता की बात होगी क्योंकि थियेटर कमांड और स्पेस कमान भी इसमें शामिल होगा।
सामरिक लिहाज से सीडीएस के गठन को तीनों सेनाओं को एकीकृत थियेटर कमांड में लाने के लिए जहां कारगर माना जा रहा वहीं सरकार के राजनीतिक नेतृत्व के लिए भी इसे सिंगल प्वाइंट कांटेक्ट की सुगम व्यवस्था। विशेषज्ञों के अनुसार सीडीएस एक तरह से प्रधानमंत्री के सैन्य सलाहकार की भूमिका निभाएंगे। इसकी वजह से तीनों सेनाओं के हथियारों की खरीद प्रक्रिया में भी तेजी आएगी इनकी सामरिक जरूरत के हिसाब से अस्त्र-शस्त्रों की आपूर्ति समय पर होगी।
कर्नल दानवीर अपाचे हेलीकाप्टर भारतीय वायुसेना के खरीदने का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि वास्तव में सेना को इसकी जरूरत थी मगर टशन में वायुसेना ने इसे अपने लिए भी हासिल किया। सीडीएस से सैन्य खरीदी का ऐसा दुहराव रुकेगा।
तीनों सेनाओं के लॉजिस्टक का खर्च कम होगा, ट्रेनिंग और आधुनिकीकरण में भी गुणात्मक बदलाव आएंगे और तीनों सेनाओं के मानव संसाधन क्षमता में कमी आएगी।
सामरिक व रणनीतिक रुप से सीडीएस के फैसले को जहां समय की जरूरत माना जा रहा वहीं इसके प्रशासनिक ढांचे और शक्ति को लेकर चिंता के सवाल भी कायम हैं। सीडीएस की इस लिहाज से पहली चुनौती रक्षा मंत्रालय की नौकरशाही होगी जो मौजूदा व्यवस्था में हावी रही है।
विशेषज्ञों का कहना है कि नई व्यवस्था में सीडीएस कितना प्रभावशाली होगा यह इस पर निर्भर करेगा कि उसे रक्षा सचिव के उपर रखा जाता है बराबर या अधीन। इन विशेषज्ञों की राय में सीडीएस को प्रभावी बनाने के लिए उसे नौकरशाही पर निर्भरता से आजाद करना अहम होगा। सैन्य विशेषज्ञ यह भी मान रहे कि तीनों सेनाओं के बीच सीडीएस पर वर्चस्व के लिए खींचतान भी होगी। ऐसे में तीनों सेनाओं के जनरल को बारी-बारी से वरिष्ठता के आधार पर सीडीएस बनाने का विकल्प रखना होगा।
सीडीएस भी तीनों सेनाओं के प्रमुखों की तरह चार स्टार जनरल ही होगा ऐसे में सीडीएस के सुपर बॉस के रुप में स्थापित करना भी सहज नहीं होगा। बहरहाल इन सबके बीच दो दशक बाद सीडीएस हकीकत बनने जा रहा है।
मालूम हो कि कारगिल युद्ध के बाद समीक्षा के लिए गठित सुब्रमण्यम समिति ने सबसे पहले तीनों सेनाओं के बीच बेहतर समन्वय के लिए सीडीएस के गठन की सिफारिश की थी। 2012 में नरेश चंद्रा कमिटी तो 2017 में शेखर कमिटी ने भी इसकी जरूरत बताई। आखिरकार फाइलों के करीब दो दशक के लंबे सफर के बाद सीडीएस को लालकिले से हकीकत की पटरी मिली है।
Hind Brigade
Editor- Majid Siddique