नई दिल्ली। अयोध्या भूमि विवाद मामले में मध्यस्थता पैनल की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। रामजन्मभूमि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता पैनल के चेयरमैन जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला से गुरूवार तक स्टेटस रिपोर्ट मांगी है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ, अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद की जल्द सुनवाई की मांग पर गुरुवार को सुनवाई करेगी। इसके साथ ही 25 जुलाई को कोर्ट मामले पर रोज़ाना सुनवाई करने पर भी विचार करेगा।अब गुरुवार को इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान पीठ करेगी।
#Ayodhya रामजन्मभूमि मामले मे सुप्रीमकोर्ट ने मध्यस्थता पैनल के चेयरमैन जस्टिस इब्राहिम कलीफुल्ला से गुरूवार तक स्टेटस रिपोर्ट माँगी। 25 जुलाई को कोर्ट मामले पर रोज़ाना सुनवाई करने पर विचार करेगा।@JagranNews
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट देखने के बाद अगर पैनल कहता है कि मध्यस्थता से हल निकलना मुश्किल है तो कोर्ट 25 जुलाई से मामले पर रोज़ाना सुनवाई करेगा।
#Ayodhya कोर्ट ने आदेश मे कहा कि मध्यस्थता पैनल की रिपोर्ट देखने के बाद अगर पैनल कहता है कि मध्यस्थता से हल निकलना मुश्किल है तो कोर्ट 25 जुलाई से मामले पर रोज़ाना सुनवाई करेगा।@JagranNews
हिंदू पक्षकार गोपाल सिंह विशारद ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि मामले के निपटारे के लिए गठित की गई मध्यस्थता टीम की तरफ से कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है, इसलिए कोर्ट इस मामले की जल्द सुनवाई करे।सुप्रीम कोर्ट ने इसी अपील पर विचार करने का आश्वासन दिया था। इस बीच मंदिर पक्षकारों ने भी गैर विवादित जमीन पर निर्माण कार्य शुरू करने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की है। कोर्ट वेबसाइट पर जारी नोटिस के मुताबिक, गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ विशारद की अर्जी पर विचार करेगी। पीठ में अन्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस. अब्दुल नजीर होंगे।
विशारद अयोध्या विवाद में मुख्य याचिकाकर्ताओं में शामिल हैं। इनके पिता राजेंद्र सिंह ने 1950 में पहला मुकदमा दाखिल किया था जिसमें बिना रोक टोक रामलला की पूजा का हक मांगा गया था। साथ ही जन्मस्थान पर रखी रामलला की मूर्तियों को वहां से हटाने पर स्थाई रोक मांगी थी। फैजाबाद जिला अदालत से होता हुआ यह मुकदमा इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा। हाई कोर्ट ने अन्य याचिकाओं के साथ इसपर फैसला दिया था।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 में विवादित भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। जिसमें एक हिस्सा भगवान रामलला विराजमान और दूसरा निर्मोही अखाड़ा व तीसरा हिस्सा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दिया था। इस फैसले को भगवान राम सहित हिंदू-मुस्लिम सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कोर्ट के आदेश से फिलहाल यथास्थिति कायम है। इस बीच आठ मार्च को शीर्ष कोर्ट ने अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के जरिये सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश फकीर मुहम्मद इब्राहिम कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी। सर्वमान्य हल तलाशने के लिए समिति को 15 अगस्त तक का समय दिया गया है।
निर्मोही अखाड़ा ने भी उठाया सवाल
उधर निर्मोही अखाड़ा ने भी मध्यस्थता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसमें मुख्य पक्षकारों के बीच सीधी बातचीत होनी चाहिए ताकि कोई हल निकले। लेकिन कई बार अनुरोध के बावजूद मौजूदा प्रक्रिया में ऐसा नहीं हो रहा है। निर्मोही अखाड़ा के प्रवक्ता कार्तिक चोपड़ा ने कहा कि अखाड़ा के सरपंच राजा रामचंद्र आचार्य की राय है कि जबतक पक्षकारों के बीच सीधी बातचीत नहीं होगी तबतक मध्यस्थता सफल नहीं हो सकती। मध्यस्थता से ऐसा कोई प्रस्ताव अभी तक नहीं आया है जिसे पंचों के सामने रखा जाए।
अखाड़ा ने आम सहमति से हल निकालने के लिए यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड को सीधी बातचीत के लिए आमंत्रित किया है। कहा है कि अगर बोर्ड उनका प्रस्ताव स्वीकार नहीं करता है तो वे कोर्ट से अनुरोध करते हैं कि मामले पर जल्द सुनवाई की जाए। अखाड़ा ने पहले ही सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर रखी है।
Hind Brigade
Editor- Majid Siddique