नई दिल्ली। कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी का राजनीतिक करियर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। अपने इस राजनीतिक करियर में वो दो बार राज्य के मुख्यमंत्री भी बनें। लेकिन, दोनों ही बार कार्यकाल पूरा करने में विफल रहे। पहली बार वह 4 नवंबर 2006 से लेकर 4 अक्टूबर 2007 तो दूसरी बार उन्होंने 23 मई 2018 को उन्होंने राज्य की कमान संभाली थी। लेकिन यह सरकार भी 14 माह के बाद 23 जुलाई 2019 को गिर गई। इस दौरान कई दिनों तक सरकार के विश्वास मत को लेकर ड्रामा चला।
गिराई कांग्रेस की सरकार
2004 के विधानसभा चुनाव में राज्य में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था। ऐसे में कांग्रेस और जेडी (एस) के बीच समझौता हुआ, जिसके बाद कांग्रेस के धरमसिंह को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन यह भी सरकार ज्यादा समय तक नहीं चली और कुमारस्वामी ने 42 विधायकों के साथ समर्थन वापस लेकर धरमसिंह की सरकार गिरा दी थी। 28 जनवरी 2006 में कुमारस्वामी को राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था।
गिराई भाजपा सरकार
2006 में उन्होंने पहली बार भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। इस दौरान दोनों पार्टियों के बीच सरकार बनाने से पहले सहमति बनी थी कि दोनों पार्टियों के नेता बारी-बारी से और बराबर समय के लिए सीएम बनेंगे। लेकिन जब सत्ता भाजपा को सौंपने की बारी आई तो कुमारस्वामी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद राज्य में दो दिनों तक राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। दो दिन बाद 12 नंवबर 2007 को में राज्य में येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा ने सरकार बनाई जिसको कुमारस्वामी ने बाहर समर्थन दिया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही समर्थन वापस लेने के साथ ही येदियुरप्पा की सरकार गिर गई।
हिचकोले खाता राजनीतिक करियर
कुमारस्वामी के राजनीतिक करियर की बात करें तो यह हमेशा से ही हिचकोले खाता रहा है। राज्य में जेडी (एस) के अध्यक्ष मेराजुद्दीन पटेल के निधन के बाद उन्होंने यह पद संभाला। लेकिन राज्य मांडया लोकसभा सीट पर हुए उप चुनाव में जेडी (एस) प्रत्याशी की हार के बाद उन्होंने इस पद के साथ-साथ नेता प्रतिपक्ष के पद से भी इस्तीफा दे दिया। सितंबर 2013 में वह दोबारा विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनें जबकि राज्य के जेडीएस अध्यक्ष का पद ए कृष्णप्पा को मिला था।
जब चुनाव में हार से हुई जमानत जब्त
कुमारस्वामी के राजनीतिक करियर की शुरुआत 1996 में हुए आम चुनाव के साथ हुई थी। उन्होंने इस चुनाव में रामनग्रा जिले में आने वाली कनकपुरा सीट से जीत हासिल की थी। इस चुनाव में जीत पर जब सवाल उठे। 1998 में यहां पर दोबारा चुनाव कराए गए जिसमें कुमारस्वामी को अपने सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में वह अपनी जमानत तक नहीं बचा सके थे। यहां से एमवी चंद्रशेखर ने जबरदस्त जीत हासिल की थी। इसके बाद 1999 में उन्हें दूसरी हार साथनौर विधानसभा सीट पर मिली, जहां कांग्रेस के डीके शिवकुमार ने उन्हें हराया। वर्ष 2004 में वह रामनग्रा विधानसभा के अंतर्गत आने वाली एक सीट से जीत हासिल की। राजनीति में कुमारस्वामी की पहचान अपने प्रतिद्वंदियों के खिलाफ ऑडियो वीडियो जारी करने वाले नेता के तौर पर होती है।
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Editor- Majid Siddique