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चांद पर मानव के पहुंचने की 50वीं सालगिरह, इंसान का छोटा कदम इंसानियत की लंबी छलांग

नई दिल्‍ली। आज से पचास साल पहले यानी 20 जुलाई, 1969 को दिन की शुरुआत हर रोज की तरह ही हुई। सूरज पूर्व से निकला। लोग रोजमर्रा के काम में जुटते गए, लेकिन इन सबके बीच इंसान ने अपने हिस्से में इसी दिन एक ऐसी उपलब्धि जोड़ ली, जिसे अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में अनहोनी माना जाता था। इसी दिन अमेरिका ने अपने अंतरिक्ष यात्रियों को चांद पर उतार दिया। 16 जुलाई को अपोलो-11 अभियान के तहत तीन अंतरिक्षयात्रियों नील आर्मस्ट्रांग, एडविन एल्ड्रिन और माइकल कोलिंस ने उड़ान भरी थी।

अपोलो कार्यक्रम

अमेरिका ने चांद पर इंसान को भेजने और उन्हें सकुशल धरती पर वापस ले आने के लिए अपोलो कार्यक्रम शुरू किया था। अपोलो एक से लेकर अपोलो 10 तक के अभियानों में इस पूरी प्रक्रिया को जांचा-परखा गया। अपोलो 11, 12, 14, 15, 16 और 17 द्वारा चांद पर इंसानों को उतारा गया और फिर से उनकी धरती पर वापसी सुनिश्चित की गई। अपोलो 13 में खराबी आ गई थी जिसके चलते यह चांद पर नहीं उतर सका। चांद पर उतरे सभी छह अमेरिकी अभियान वापसी में अपने साथ प्रचुर मात्रा में वैज्ञानिक आंकड़े ले आए। अंतरिक्षयात्री चांद की सतह के 400 किग्रा नमूने भी धरती पर लाने में सफल रहे। वहां की मिट्टी की बनावट, क्षुद्र ग्रहों, चांद पर कंपन, हीट फ्लो, चुंबकीय क्षेत्र और सौर हवाओं को लेकर तमाम प्रयोग हुए। 20 अप्रैल, 1972 को इस कड़ी का अपोलो 17 आखिरी सफल अभियान बना। इसके बाद अपोलो कार्यक्रम को खत्म कर दिया गया।

अपोलो-11 अभियान

चांद पर इंसान की यह पहली सफल लैंडिंग थी। आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन चांद की सतह पर दो घंटे चहलकदमी करते रहे। इस दौरान इन लोगों ने तमाम प्रयोग किए, नमूने जुटाए और अमेरिकी झंडे को गाड़कर अपनी विजय पताका भी फहराई। चांद की सतह पर कुल 21 घंटे, 36 मिनट का समय व्यतीत किया, लेकिन अधिकांश समय चांद पर उतरे ल्युनर माड्यूल में रहे। इनके तीसरे सहयोगी माइकल कोलिंस इस दौरान चांद की कक्षा में परिक्रमा कर रहे कमांड माड्यूल में बने रहे।

महाबली रॉकेट: सैटर्न वी

अपोलो 11 अभियान को सफल बनाने में सैटर्न- वी रॉकेट का बड़ा योगदान है। अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में यह अब तक का सबसे बड़ा और ताकतवर रॉकेट है। 100 मीटर से अधिक लंबे और 2800 टन वजनी इस रॉकेट ने लांचिंग के समय प्रति सेकंड 20 टन ईंधन का दहन किया। इसके कुल वजन का 85 फीसद इसमें ईंधन भरा हुआ था।

बदली गई योजना

जब 1960 में अपोलो कार्यक्रम की घोषणा की गई तो मूल योजना चंद्रमा की कक्षा में एक छोटे चालक दल को भेजने की थी। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन ऑफ केनेडी और अधिक चाहते थे। 1961 में उन्होंने चंद्रमा पर इंसान को उतारने की अपनी और संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रतिबद्धता की घोषणा करते हुए अपना प्रसिद्ध भाषण दिया।

तैयार हुए थे दो भाषण

अमेरिका को अंदेशा था कि अपोलो 11 मिशन के दौरान कोई त्रासदी हो सकती है। इसलिए तत्कालीन राष्ट्रपति निक्सन के भाषण लेखक विलियम सफायर ने दो अलगअलग भाषण लिखे। एक मिशन की जीत का जश्न मनाने के लिए, दूसरा मिशन की विफलता के लिए।

अजब संयोग

जिस समय आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन चांद की सतह पर इतिहास रच रहे थे, ठीक उसी समय चंद्रमा से लगभग 530 मील की दूरी पर लूना-15 मानव रहित सोवियत अंतरिक्ष यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

खत्म हुआ स्पेस वार

4 अक्टूबर, 1957 को सोवियत संघ ने स्पुतनिक 1, पहला कृत्रिम उपग्रह लांच किया। इस सफलता ने सैन्य, आर्थिक और तकनीकी के क्षेत्र में अमेरिका को बड़ी चुनौती दी और इसी के साथ दोनों देशों के बीच स्पेस वार शुरू हुआ। अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर ने नासा का गठन किया और प्रोजेक्ट मर्करी की शुरुआत की। इसका उद्देश्य मनुष्य को पृथ्वी की कक्षा में भेजना था। 12 अप्रैल, 1961 को सोवियत अंतरिक्ष एजेंसी ने यूरी गगारिन को अंतरिक्ष में भेजकर एक और बाजी अपने नाम कर ली। यूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले पहले व्यक्ति बने। अमेरिका के लिए यह एक और बड़ा झटका था। लगभग एक महीने बाद, 5 मई, 1961 को एलन शेपर्ड 15 मिनट की सबऑर्बिटल की यात्रा पूरी करके अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी बने। कुछ साल बाद चांद पर इंसान को भेजकर इस जंग में अमेरिका ने बड़ी बढ़त बनाई।\

Hind Brigade

Editor- Majid Siddique


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