नई दिल्ली। ये महान विचार थे मिसाइल मैन अवुल पकिर जैनुलाअबदीन अब्दुल कलाम (एपीजे अब्दुल कलाम) के। देश के पूर्व राष्ट्रपति और भारतीय मिसाइल प्रोग्राम के जनक कलाम की आज पुण्यतिथि है। कलाम ने एक वैज्ञानिक और इंजिनियर के तौर पर उन्होंने डीआरडीओ और इसरो के कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर काम किया है। उनका निधन 27 जुलाई, 2015 में शिलांग में लेक्चर देते वक्त दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। देश उनके योगदान को हमेशा याद रखेगा। आगे बढ़ते है और जानते है उनसे जुड़ी कुछ खास बातें...
भारत के पूर्व राष्ट्रपति कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम (तमिलनाडु) में हुआ था। कलाम को बतपन में अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया था। कहा जाता है कि कलाम अपने घर में दीपक जलाकर पढ़ाई करते थे क्योंकि, उस वक्त उनके घर में बिजली नहीं हुआ करती थी। आठ साल की उम्र में वह सुबह 4 बजे उठकर गणित पढ़ने के लिए जाया करते थे। वह ऐसा इसलिए करते थे क्योंकि उनके टीचर हर साल पांच बच्चों तो मुफ्त में गणित पढ़ाते थे। इसके बाद वह नमाज अदा करते और रोमेश्वरम के रेलवे स्टेशन और बस अड्डे पर जाकर समाचार पत्र इकट्ठा करते थे। अब्दुल कलाम अखबार लेने के बाद रामेश्वरम शहर की सड़कों पर बैचा करते थे। वह बचपन से ही आत्मनिर्भर थे।
1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में आए। डॉक्टर
पांचवी क्लास के टीचर की वजह से किया ‘एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी’का रुख ‘एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी’में आने के पीछे कलाम अपने पांचवी कक्षा के टीचर सुब्रह्मण्यम अय्यर को वजह बताते थे। वह कहते थे कि वो हमारे सबसे अच्छे टीचर्स में से थे। एक बार उन्होंने सवाल किया था कि चिड़िया कैसे उड़ती है? किसी भी छात्र ने इसका जवाब नहीं दिया। अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए। वहां कई पक्षी उड़ रहे थे। कुछ समुद्र के किनारे बैठे थे और कुछ किनारे पर उतर रहे थे। उस दुन उनके टीचर ने उस दिन पक्षी के उड़ने के पीछे के कारण को समझाया साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी विस्तार से बताया। उनके द्वारा बताई गई बाते कलाम के अंदर इस कदर समा गई कि इससे उन्हें जिंदगी का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा दी। बाद में उन्होंने तय किया कि वह उड़ान की दिशा में ही अपना करियर बनाएंगे। उसके बाद उन्होंने फिजिक्स की पढ़ाई की और मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई की।
1962 में ISRO पहुंचे कलाम
1962 में कलाम इसरो पहुंचे। जब कलाम प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे तब भारत ने अपना पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान एसएलवी-3 बनाया था। इसके बाद वर्ष 1980 में रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के समीप स्थापित किया गया और भारत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। कलाम ने इसके बाद स्वदेशी गाइडेड मिसाइल को डिजाइन किया। इसके बाद उन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें भारतीय तकनीक से बनाईं।
1982 में कलाम को डीआरडीएल (डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट लेबोरेट्री) का डायरेक्टर बनाया गया। तब उन्हें अन्ना यूनिवर्सिटी से उन्हें डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया गया। कलाम ने तब रक्षामंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. वीएस अरुणाचलम के साथ इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (आईजीएमडीपी) का प्रस्ताव तैयार किया। इसी के साथ स्वदेशी मिसाइलों के विकास के लिए क्लाम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई।
1992 से 1999 तक कलाम रक्षा मंत्री के रक्षा सलाहकार थे। तब वाजपेयी सरकार ने पोखरण में दूसरी बार न्यूक्लियर टेस्ट किए और भारत परमाणु हथियार बनाने वाले देशों में शामिल हो गया। इसी के तहत कलाम ने भारत को विजन 2020 दिया। इसके तहत कलाम ने भारत को विज्ञान के क्षेत्र में तरक्की के जरिए 2020 तक आत्याधुनिक करने की खास सोच दी गई।
कई पुरस्कारों से किया गया सम्मानित
कलाम को 1981 में भारत सरकार ने पद्म भूषण और फिर, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। कलाम देश के केवल तीसरे ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हे भारत के सर्वोच्च पद पर नियुक्ति से पहले भारत रत्न दिया गया। उनसे पहले यह सम्मान मुकाम सर्वपल्ली राधाकृष्णन और जाकिर हुसैन को दिया गया था।
कलाम के आखिरी पल
27 जुलाई 2015 को उनका निधन हुआ। तब वह मेघालय के शिलांग के आईआईएम में लेक्चर देने के लिए गए थे। लेक्चर देते वक्त उन्हें दिल का दौरा पड़ा। जल्द से जल्द उन्हें अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया और 83 वर्ष की आयु में कलाम देश को हमेशा के लिए अलविदा कह गए।
Hind Brigade
Editor- Majid Siddique