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चंद्रयान-2 : इसरो ने तमिलनाडु के 2 गांवों की मिट्टी से बनाई थी चांद की धरती, बचाए 25 करोड़

नई दिल्ली : भारत के चंद्रयान-2 का सफर तमिलनाडु के 2 गांवों से जुड़ा है। इन गांवों की मिट्टी के इस्तेमाल से ही निश्चित हुआ था कि चंद्रयान-2 की लैंडिंग चांद पर सुरक्षित होगी या नहीं। तमिलनाडु के इन 2 गांवों का नाम है, सीतमपोंडी और कुन्नामलाई। दरअसल इन गांवों में पाई जाने वाली मिट्टी/पत्थर चांद की सतह पर मौजूद मिट्टी/पत्थर से मिलते-जुलते हैं। इस प्रोग्राम के दौरान कोई खर्चा नहीं हुआ। इसके लिए 25 करोड़ रुपए का बजट भी बनाया गया था। चंद्रयान-2 को भेजने से पहले भारतीय अंतरिक्ष एजैंसी (इसरो) ने पहले ही जमीन पर कुछ कड़ी मेहनत की है ताकि इसके चंद्रमा की लैंडिंग चांद पर सुरिक्षत हो सके। आपको बता दें, चंद्रयान-2 तीन हिस्सों से मिलकर बना है, जिसमें पहला-ऑर्बिटर, दूसरा-विक्र म लैंडर और तीसरा-प्रज्ञान रोवर है। वैज्ञानिकों ने चांद के साऊथ पोल के अध्ययन के लिए यहां कि मिट्टी का बेंगलूर की प्रयोगशाला में परीक्षण किया था।  इसरो ने लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान को सफलतापूर्वक चांद पर उतारने के लिए आर्टिफिशियल चांद की सतह तैयार की थी। यानी इन गांव की मिट्टी का इस्तेमाल आर्टिफिशियल चांद की सतह बनाने में किया गया था। चांद और धरती की मिट्टी अलग-अलग है। वहीं भूवैज्ञानिकों ने पाया कि तमिलनाडु के इन गांवों की मिट्टी चांद की मिट्टी से मेल खाती है जिसके बाद चांद की नकली सतह बनाने के लिए यहां मिट्टी का इस्तेमाल किया गया। 

इसरो के पूर्व निदेशक एम. अन्नादुरई ने बताया कि पृथ्वी की सतह और चंद्रमा की सतह पूरी तरह से अलग है इसलिए हमें एक आर्टिफिशियल चंद्रमा की सतह बनाने और रोवर और लैंडर का परीक्षण करना था। चंद्रमा की सतह क्रेटर, चट्टानों और धूल से ढकी है। इसकी मिट्टी की पृथ्वी की तुलना में अलग बनावट है। अन्नादुराई ने बताया कि लैंडर और रोवर के पहियों का परीक्षण उनकी उड़ान से पहले किया जाना था। उन्होंने कहा कि चांद की रोशनी में डिनर करना सिर्फ इंसानों के लिए होता है लेकिन हमें लैंडर और रोवर का परीक्षण करना था जिसके बाद इसरो ने अपने रोवर के परीक्षण के लिए चंद्रमा जैसा प्रकाश का वातावरण तैयार किया। 

Hind Brigade

Editor- Majid Siddique


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