हैडलाइन

जमीन का टुकड़ा भर नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का भूखंड था कश्मीर

पांच अगस्त, 2019 का दिन भारत के लिए 1947 में मिली आजादी से कम महत्व नहीं रखता। इस दिन अनुच्छेद 370 और 35ए के रूप में कश्मीर को मिले विशेष राज्य का दर्जा और कुछ विशेष अधिकार को समाप्त करने की निर्णायक पहल हुई। ये अधिकार कश्मीर को भारत से अधिक पाकिस्तान की ओर धकेल रहे थे। साथ ही जम्मू-कश्मीर को भारतीय संस्कृति से दूर कर रहे थे, लेकिन मोदी सरकार के फैसले से एक राष्ट्र, एक विधान और एक निशान के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग तो बन ही गया, साथ ही भारतीय संस्कृति से उसके जुड़ाव वाले अवरोधक भी खत्म हो गए।

कश्मीर का सांस्कृतिक इतिहास

दरअसल किसी भी भूखंड का इतिहास उसकी राजनीतिक गलतियों से निर्मित नहीं होता, अपितु उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से तय होता है। ऐसे ही कश्मीर को समझने से पहले उसका सांस्कृतिक इतिहास जानना जरूरी है। कोई भी राष्ट्र मात्र कागज पर पेंसिल से खींचा गया राजनीतिक या भौगोलिक मानचित्र नहीं होता। उसकी एक निरंतर प्रवाहमान सांस्कृतिक धारा भी होती है। जैसे एक नदी कहीं से निकलती है और प्रवाहित होती है। काल के थपेड़ों में कभी वह पूरी तरह सूख जाए, पर जैसे ही वर्षा होती है वह नदी पुन: अपने स्वरूप में जीवित हो उठती है।

कश्मीर मात्र भूखंड नहीं है

कश्मीर भी मात्र एक भूखंड नहीं, अपितु अपने अतीत में नदी की तरह पूरा सांस्कृतिक प्रवाह समेटे है। समय के साथ विदेशी हमलावरों के आघात के कारण कश्मीर की प्राचीन सांस्कृतिक छवि भले दब गई हो, पर समय आते ही वह पुन: जीवित हो उठी। कश्मीर की इस प्राचीन विरासत को हमें समझना होगा।

कश्मीर सनातन धर्म और दर्शन का केंद्र

वास्तव में कश्मीर सनातन धर्म और दर्शन का केंद्र रहा है। आज भी प्राचीन काल के अलौकिक मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं। वहां की अपनी पूजा पद्धति है। कश्मीर का ज्ञान-विज्ञान इतना उन्नत था कि चीन, जापान से यात्री वहां गए और वहां की संस्कृति, आध्यात्मिकता का वर्णन अपने यात्रा वृतांतों और साहित्य में किया।

आदि शंकराचार्य का दर्शन ही कश्मीरियत है

कश्मीर जो शैव-दर्शन का केंद्र था और हिंदुओं की पहचान था वह किसी कालखंड में इस्लाम का परिचय बन गया। आज जो यह दावा करते हैं कि इस्लाम ही कश्मीरियत है उन्हें यह याद रखना होगा कि कश्मीरियत वह है जो आदि शंकराचार्य के दर्शन में प्रकट होती है और जो अभिनव गुप्त के नाट्यशास्त्र में प्रदर्शित होती है। अध्यात्म का शिखर क्षेत्र है कश्मीर। वह कश्मीर प्राचीन काल से ही ज्ञान, कला और दर्शन का शिखर रहा है। कश्मीर वैसे ही था जैसे रामेश्वरम, द्वारका या पुरी।

भारत में इस्लाम मेहमान की तरह आया

हमारी अर्चनाओं का भूखंड था यह क्षेत्र। दुखद है कि लोग संस्कृति के नाम पर विलाप करते हैं, उसका वास्तविक अध्ययन नहीं करते। सभी वैचारिक दंगलों के पीछे यही त्रुटि होती है। भारत ‘अतिथि देवो भव’ जैसी भावुकताओं में विश्वास करने वाले भोले लोगों का देश था। भारत में इस्लाम भारतीय चोला धारण कर मेहमान की तरह आया। हमने उसे अपने घर में स्थान दिया। बाद में क्या हुआ, यह किसी से छिपा नहीं। सब जानते हैैं कि कश्मीरी पंडितों के साथ क्या हुआ?

जम्मू-कश्मीर के आधे क्षेत्रफल पर चीन और पाक का कब्जा

यहां यह जानना जरूरी है कि 1947 में भारत की आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर का जितना क्षेत्रफल था, उसके लगभग आधे पर चीन और पाकिस्तान ने मिलकर कब्जा कर लिया। गिलगिट-बाल्टिस्तान, मुजफ्फराबाद, मीरपुर, कोटली आदि क्षेत्रों पर पाकिस्तान का बलात नियंत्रण हो गया। पाकिस्तान के नियंत्रण वाले इसी कश्मीर के मुजफ्फराबाद जिले के पास से पवित्र ‘कृष्ण-गंगा’ नदी बहती है, जिसका पौराणिक महत्व है।

‘नमस्ते शारदा देवी कश्मीरपुर वासिनी’

कहा जाता है कि इसी नदी के किनारे स्वयं ब्रह्मा द्वारा मां शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें स्थापित किया गया और उसी के बाद से सारा कश्मीर ‘नमस्ते शारदा देवी कश्मीरपुर वासिनी’ कहते हुए उनकी आराधना करता रहा। मां शारदा की ऐसी कृपा कश्मीर पर हुई कि शिवपुराण, कल्हण की राजतरंगिणी, चरक संहिता, अष्टांग योग आदि अद्वितीय ग्रंथों की रचना वहीं हुई। शैव दार्शनिकों की एक लंबी परंपरा भी कश्मीर से प्रारंभ हुई।

चीनी यात्री ह्वेनसांग का शारदा पीठ पर यात्रा विवरण

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि शारदा पीठ के पास बहुत बड़े-बड़े विद्वान रहते थे और वहां एक विद्यापीठ था जहां दुनिया भर के विद्यार्थी ज्ञानार्जन करने आते थे। हिंदू धर्म का पताका फहराने वाले आदि शंकर ने इसी शारदा पीठ में मां वाग्देवी के दर्शन किए थे।

कश्मीर भारतीयों की पहचान है

स्पष्ट है कि कश्मीर ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म, दर्शन, पूजा-अर्चना पद्धति का क्षेत्र है। भारतीयों की पहचान का क्षेत्र है। अब जब अनुच्छेद 370 और 35ए समाप्त हो गए हैं तो उम्मीद है कि कश्मीरी पंडितों की वापसी के साथ ही जीर्ण-शीर्ण मंदिरों का उद्धार भी होगा और मोक्ष और ज्ञान की कामना से लोग वहां प्रवास कर सकेंगे।

Hind Brigade

Editor- Majid Siddique



साप्ताहिक बातम्या

मासिक समाचार